प्रस्तावनाखंड : विभाग चवथा - बुद्धोत्तर जग
प्रकरण ३० वें.
जगद्विकासाची कारकें.
जगद्विकास व दिवसनुदिवस अवनति : ऐतिहासिक तत्त्वज्ञानाचा आणखी महत्त्वाचा सिद्धांत अलीकडे हा निघाला आहे कीं उत्क्रांतिनियमानुसार जीवजातींच्या उन्नतीप्रमाणें अखिल मानव समाजाचीहि उत्तरोत्तर उन्नति होत जात आहे; आणि ज्याला 'सत्ययुग' किंवा 'सुवर्णयुग' म्हणतात तें पूर्वीं होऊन गेलें नसून पुढें उगवणार आहे. म्हणजे जगाची एकंदर स्थिति उत्तरोत्तर सुधारत चालली आहे. निराशावादी म्हणतात त्याप्रमाणें अवनत होत चाललेली नाहीं. जगाचा आजपर्यंतचा एकंदर इतिहास उपयुक्त सिद्धांत मनावर स्पष्टपणें बिंबवितो.
प्रत्येक राष्ट्रांत गेला तो दिवस बरा, दिवसानुदिवस काल कठिण होत चालला आहे, अशा त-हेची समजूत दृष्टीस पडते. इतिहासकार वस्तुस्थिति अगदीं उलट आहे असें सांगत आहेत. आपल्याकडील सत्ययुगकलियुगांची कल्पना घ्या. आपल्या देशांतील मोठमोठे कार्यकर्ते पाहिले तर ते कलियुगांतलेच. उपनिषदांतील ब्रह्मवादी, निरनिराळे सूत्रकार, दर्शनकार व शंकराचार्यादि आचार्य हे सर्व कलियुगांतीलच आहेत. अशोकासारखे चक्रवर्ती कलियुगांतलेच. प्रत्येक रामायण व महाभारत ग्रंथांचे अनेक कर्ते व संपादक हेहि कलियुगांतलेच. वेदाच्या संहितीकरणाच्या कार्यांत मदत करणारे वैशंपायनासारखे लोक देखील कलियुगांतलेच. बुद्धासारखा जगद्वयापी कार्याचा संस्थापकहि कलियुगांतलाच. असें असतां आपण कलियुगास काल्पनिक सत्ययुगापेक्षां वाईट कसं म्हणावें ? आज जी संपत्ति जगांत आहे तिची प्राचीन जगास कल्पनाहि होणें अशक्य आहे. हिंदुस्थानासारख्या परतंत्र राष्ट्रास दिवसानुदिवस आपली प्रगतीच होत चालली आहे या त-हेची कल्पना पचनीं पडणें कठिण जाईल पण विचार करतां आपली उन्नति अनेक अंगांनीं होत आहे असें दृष्टीस पडेल. पूर्वीपेक्षां आज प्रत्येक मनुष्याची रहाणी अधिक चांगल्या त-हेची होऊं लागली आहे. आपल्या लोकांत जागतिक विचारविषयक ज्ञान मुळींच नव्हतें. आज आपणास वगळावयाच्या दृष्टीनें तरी इतर लोक आपल्या दृष्टीनें विचार करूं लागले आहेत. व्यक्तिस आज हिंदुस्थानांत जितक्या निर्भयतेनें वावरतां येतें तितकें पूर्वी वावरता येत नव्हतें. लोकसत्तेची आकांक्षा आज भारतीयांत इतकी बद्धमूल झाली आहे कीं, ती आपलें कार्य अधिकाधिक केल्याशिवाय राहणार नाहीं. आणि भावी हिंदुस्थान कालच्या हिंदुस्थानापेक्षां अधिक सुखमय होईल यांत शंका नाहीं.
परिशिष्ट
जगांतील धर्म व संप्रदाय.
धर्म | प्रदेश | ||||||
यूरोप | आशिया | आफ्रिका | उ.अमे. | द.अमे. | ओशिया | एकूण | |
ख्रिस्ती | |||||||
रोमन कॅथोलिक | १८३७६० | ५५०० | २५०० | ३६७०० | ३६२०० | ८२०० | २७२८६० |
कर्मठ कॅथोलिक | ९८००० | १७२०० | ३८०० | १००० | - | - | १२०००० |
प्रोटेस्टंट चर्च | ९३००० | ६००० | २७५० | ६५००० | ४०० | ४५०० | १७१६५० |
एकूण ख्रिस्ती | ३७४७६० | २८७०० | ९०५० | १०२७०० | ३६६०० | १२७०० | ५६४५१० |
ख्रिस्तेतर | |||||||
ज्यू | ९२५० | ५०० | ४०० | २००० | ३० | २५ | १२२०५ |
मुसुलमान | ३८०० | १४२००० | ५१००० | १५ | १० | २५००० | २२१८२५ |
बौद्ध | १३८००० | ११ | - | - | २० | १२८०३१ | |
हिंदू | २१०००० | ३०० | १०० | ११० | ३० | २१०५४० | |
कन्फ्युशियानिस्ट व ताओ | ३००००० | ३०० | १०० | ७०० | ३००८३० | ||
शिंतौ | २५००० | २५००० | |||||
वन्य | ४२००० | ९८००० | २० | १२५० | १७००० | १५८२७० | |
वर्गीकरण न केलेले | १००० | ६००० | १३० | ८०० | - | १५० | १५२८० |
एकूण ख्रिस्तेतर | १४०५० | ८६३५०० | १४९८७१ | १०२३५ | १४०० | ४२९२५ | १०८१९८१ |
एकूण | ३८८८१० | ८९२२०० | १५८९२१ | ११२९३५ | ३८००० | ५५६२५ | १६४६४९१ |
मानवजाती मानव जातीची विभागणी वंशावरून किंवा थोड्या अशास्त्रीय पद्धतीनें वर्णावरून करतां येते. त्यांत प्रमुख वर्ण पिवळा आहे. पुढील कोष्टकांतील वंशांचे वर्ण अनुक्रमें येणें प्रमाणें आहेतः- (१) पीतवर्णी, (२) श्वेतवर्णी, (३) कृष्णवर्णी, (४) पिंगटवर्णी व (५) ताम्रवर्णी |
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वंश | प्रदेश | संख्या |
मंगोलियन अथवा टुरेनियम | आशिया | ६५५ ००० |
काकेशियन, इंडोजर्मानिक अथवा आर्यन | यूरोप, इराण, हिंदूस्थान | ६४५ ००० |
नीग्रो अथवा वंटू | आफ्रिका | १९० ००० |
सेमेटिक अथवा हॅमेंटिक | उत्तर आफ्रिका व अरबस्तान | ८१ ००० |
मॅले आणि पॉलि नेशियन | आस्ट्रेलिया व पॉलिनेशिया | ५२ ००० |
रेड इंडियन | अमेरिका | २३ ००० |
टीप - आंकडे हजारांचे आहेत
क्षेत्रफळ व लोकसंख्या जगाच्या पृष्ठभागाचें क्षेत्रफळ १९,६५,५०,००० चौरस मैल इतकें ठरविण्यांत आलें असून त्यांपैकीं ५,५५,००,००० चौरस मैल जमीन व १४,१०,५०,००० चौरस मैल पाणी आहे. विषुववृत्तावरील पृथ्वीचा व्यास, ७,९२६|| इंग्रजी मैल असून ध्रुवाजवळ ७,९०० मैल आहे. |
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खंड | क्षेत्रफळ चौ. मैल | लोकसंख्या |
यूरोप | ३७५० | ४०० ००० |
आशिया | १७ ००० | ९१० ००० |
आफ्रिका | ११ ५०० | १८० ००० |
उत्तर अमेरिका | ८ ००० | १२० ००० |
दक्षिण अमेरिका | ६ ८०० | ३८ ००० |
ओशियानिया | ३ ४५० | ८ ००० |
ध्रुवप्रवेश | ५ ००० | ..... ..... |
टीप - आकडे हजारांचे आहेत