प्रस्तावनाखंड : विभाग तिसरा. बुद्धपूर्वजग
प्रकरण ५ वें.
वेदकालांतील शब्दसृष्टि.
ग्रहनक्षत्रादि.
ग्रह व नक्षत्रनामें [ॠग्वेद]
| १अघा (मघा) | चंद्रमस् | ६विधु |
| २अर्जुनी (फल्गुनी) | ३तिष्य (पुष्य) | शुक्र |
| अश्वयुज् | ४नक्षत्र | श्वन् |
| अश्विनी | पुनर्वसु | ७सूर्य |
| ॠक्ष | रोहिणी | सप्तर्षि |
| गो | ५वने | स्तृ |
| [तै.सं.] | ||
| अनूराधा | चुपुणीका | रेवती |
| अपभरणी | तिष्य (पुष्य) | रोहिणी (ज्येष्ठा) |
| अभ्रयन्ती | दुला (कृत्तिका) | वर्षयन्ती |
| अम्बा (कृत्तिके- पैकीं तारा) | नक्षत्र | विचृत् (मूळ) |
| नितत्नि (कृत्तिका) | विशाखा | |
| अश्वयुज् | पुनर्वसू | शतभिषज् (शत- तारका) |
| अशाढा (उत्तराषाढा) | प्रोष्ठपदा (उत्तरा- भाद्रपदा) | |
| आदित्य | श्रविष्ठा (धनिष्ठा) | |
| आर्द्रा | फल्गुनी | श्रोणा (श्रवण) |
| आश्रेषा | मघा | सप्तर्षि (तारे) |
| कृत्तिका | मृगशीर्ष | स्वाति |
| चित्रा | मेघयन्ती | हस्त |
| [अथर्ववेद] | ||
| अनुराधा | कृत्तिका | पुष्य |
| अनुसूर्य | चंड (ग्रह) | पूर्वाफल्गुनी |
| अभिजित् | १०चंद्र | पूर्वाषाढा |
| अश्वयुज् | चित्रा | प्राहृादि |
| आर्द्रा | ज्येष्ठघ्नी | प्रोष्ठपदा |
| आश्लेषा | ज्येष्ठा | भरणी |
| इन्द्रर्षभ | ज्योतिरग्र | भानु |
| उत्तरा | तारका | मघा |
| उल्कुषीमान (धूम- केतु) | ११दिव्यशुन | मूळ |
| धिषण (ग्रह) | मृगशिरस् | |
| ८ॠक्षीका | १२धूमकेतु | रेवती |
| ॠक्ष | नक्षत्र | रोहिणी |
| ९कालकंज | नक्षत्रज | विचुत् |
| विधु | शुक्र | सुनक्षत्र |
| विशाखा | श्रवण | स्वाति |
| शकधूम | धनिष्ठा | हस्त |
| शतभिषज् | १३सप्तसूर्या | |
| [संहितेतर] | ||
| अरुंधती | १७ग्रह | १९ध्रुव |
| १७अर्यम्ण: पन्था | १८देवनक्षत्र | ०मृग |
| १५इषुत्रिकांडा | धनिष्ठा | २१सूर्यनक्षत्र |
| १६केतु (धूमकेतु) | ||
