प्रस्तावनाखंड : विभाग चवथा - बुद्धोत्तर जग
प्रकरण ९ वें.
भारती युद्धांतापासून चंद्रगुप्तापर्यंत राजकीय इतिहास.
पुराणांत वर्णिलेलीं कलियुगांतील राजघराणीं.- वरील विवेचनावरून जी एक गोष्ट स्पष्ट होते ती ही कीं, बौद्ध वाङ्मयांत आलेली बुद्धाच्या वेळची राजकीय माहिती सोडून दिली तर पुराणांतरीं दिलेल्या निरनिराळ्या राजघराण्याच्या वंशावळ्यांखेरीज चंद्रगुप्तापूर्वीचा हिंदुस्थानचा राजकीय इतिहास फारसा उपलब्ध नाहीं म्हटलें तरी चालेल. ज्या भविष्यपुराणापासून इतर पुराणांनीं आपल्या कलियुगांतील राजघराण्यांच्या वंशावळ्या उतरल्या, त्या भविष्यपुराणाची शुद्ध प्रत आज उपलब्ध नसल्यामुळें निरनिराळ्या पुराणांतील वंशावळ्यांचें चिकित्सक बुद्धीनें संशोधन करून त्यावरून भविष्यपुराणाच्या मूल प्रतीचा शुद्ध पाठ काढण्याचा प्रयत्न केला पाहिजे. हें कार्य थोडेंबहुत पार्गिटेर साहेबांनीं केलें असल्यामुळें त्यांच्या मेहनतीचें फल पुढें देत आहों.
पौरव घराणें.
[या व यापुढील वंशावळ्यांतील राजे अनुक्रमानें दिले असून जेथें पुढील राजा मागील राजाचा पुत्र म्हणून म्हटलें आहे, तेथे त्या दोहोंत उभी रेघ व जेथें त्या दोहोंचा संबंध दाखविणारें नातें दिलें नाहीं तेथें चरण रेघा घातल्या आहेत. नांवाच्या पुढें कंसात दिलेले आंकडे कारकीर्दींचीं वर्षें दर्शवितात.)
| अभिमन्यु = उत्तरा | (नृचक्षु चालू) |
| । | । |
| परीक्षित् | सुखीवल (नुचक्षूचा वारस) |
| । | । |
| जनमेजय | परिप्लव |
| । | । |
| शतानीक | सुनय |
| । | । |
| अश्वमेधदत्त | मेघावी ( सुनयाचा वारस) |
| । | । |
| अधिसो (सी) म कृष्ण [सध्यां (म्हणजे वंश सांगण्याच्या वेळीं) राज्य करीत असलेला]. |
नृपंजय |
| । | । |
| निचक्षु [याचे एकंदर आठ पुत्र, तें :] | दुर्व |
| । | । |
| १ उष्ण (हा वडील मुलगा) | तीग्मात्मा |
| । | । |
| २ चित्ररथ | बृहद्रथ |
| । | । |
| ३ शुचिद्रथ | वसुदान |
| । | । |
| ४ वृष्णिमत् | शतानीक |
| । | । |
| ५ सुषेण | उदयन |
| । | । |
| ६ सुनीथ | वहीनर |
| । | । |
| ७ रुच | दण्डपाणि |
| । | । |
| ८ नृचक्षु | निरामित्र |
| । | |
| क्षेमक |
| ऐक्ष्वाकु घराणें. | |
| बृहदल | [सुपर्ण चालू] |
| । | । |
| बृहत्क्षय [बृहदलाचा वारस] | अमित्रजित् |
| । | । |
| उरुक्षय | बृहद्भ्राज |
| । | । |
| वत्सव्यूह | धर्मी |
| । | । |
| प्रतिव्योम | कृतंजय |
| । | । |
| दिवाकर [मध्यदेशांत अयोध्येमध्यें राज्य करीत असलेला] | रणंजय |
| । | । |
| सहदेव | संजय |
| । | । |
| बृहदश्व (सहदेवाचा वारस) | शाक्य |
| । | । |
| भानुरथ | शुद्धोदन |
| । | । |
| प्रतीतश्व | सिद्धार्थ |
| । | । |
| सुप्रतीक | राहुल |
| । | । |
| मरुदेव | प्रसेनजित् |
| । | । |
| सुनक्षत्र | क्षुद्रक |
| । | । |
| किन्नराश्व | कुलक |
| । | । |
| अन्तरिक्ष | सुरथ |
| । | । |
| सुपर्ण | सुमित्र |
मगध देशांतील बार्हद्रथ घराणें.
(जरासंधाच्या वंशांतील सहदेवापासून झालेले राजे)
भारतयुद्ध झालें व सहदेव मारला गेला. नंतर त्याचा वारस सोमाधि हा गिरिव्रजामध्यें राजा झाला व त्यानें ५८ वर्षे राज्य केलें.
सोमाधीनंतर गादीवर आलेले राजे पुढीलप्रमाणें दिले आहेत. यापैकीं बृहत्कर्म्यापावेतोंच्या राजांच्या कारकीर्दींचीं वर्षें भूतकाळांत देऊन त्याच्यापुढील सेनाजित् हा सध्यां गादीवर आहे असें म्हणून त्याच्या कारकीर्दींचीं वर्षे दिलीं नाहींत. त्याच्या नंतरच्या राजांच्या कारकीर्दीचीं वर्षें मात्र हा अमुक वर्षें राज्य करील, हा तमुक वर्षें राज्य करील याप्रमाणें भविष्य काळांत सांगितलीं आहेत.
| श्रुतश्रवा | (६४) | [धर्मनेत्र चालू] | |
| । | । | ||
| अयुतायु | (२६) | निर्वृति | (५८) |
| । | । | ||
| निरमित्र | (४०) | त्रिनेत्र किंवा | (२८) |
| । | सुश्रम | (३८) | |
| सुक्षत्र | (५६) | । | |
| । | दृढसेन | (४८) | |
| बृहत्कर्मा | (२३) | । | |
| । | महीनेत्र किंवा सुमति | (३३) | |
| सेनाजित् | (२३?) (सध्यां राज्यावर असलेला.) | । | |
| । | सुचल | (३२) | |
| श्रुतंजय | (४०) | । | |
| । | सुनेत्र | (४०) | |
| विभु | (२८) | । | |
| । | सत्यजित् | (८३) | |
| शुचि | (५८) | । | |
| । | विश्वजित् |
(२५) | |
| क्षेम | (२८) | । | |
| । | रिपुंजय | (५०) | |
| सुव्रत | (६४) | ||
| । | |||
| सुनेत्र किंवा | (३५) | ||
| धर्मनेत्र | (५) |
प्रद्योत घराणें.
[बृहद्रथ, वीतिहोत्र व अवंति हीं नाहींशीं झाल्यावर, पुलिक हा आपल्या धन्याला ठार करील व आपला मुलगा प्रद्योत याला राज्यावर बसवील.]
| प्रद्योत | [२३] | [विशाखयूप चालू] | |
| । | । | [२१] | |
| पालक | [२४] | अजक | |
| । | । | ||
| विशाखयूप | [५०] | नंदिवर्धन | [२०] |
शिशुनाग घराणें.
[शिशुनाग हा पुत्राला काशीमध्यें ठेऊन स्वतः गिरिव्रज येथें राहील.]
| शिशुनाग | [४०] | [दर्शक चालू] | |
| । | । | ||
| काकवर्ण | [३६] | उदयी [३३ - तो राज्याच्या चौथ्या वर्षीँ गंगेच्या दक्षिणतीरावरील कुसुमपुर ही आपली राजधानी करील.] |
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| । | । | ||
| क्षेमधर्मा | [२०] | नंदिवर्धन | [४०] |
| । | । | ||
| क्षत्रौजस् | [४०] | महानंदी | [४३] |
| । | |||
| बिंबिसार | [२८] | ||
| । | |||
| अजातशत्रु | [२५] | ||
| । | |||
| दर्शक | [२५] | ||
तत्कालीन असणारी दुसरीं राजघराणीं.
[वर सांगितलेल्या राजांनां समकालीन असे दुसरे राजेहि होतील. पुढील राजांचा काल एकच होईल - म्हणजे ते सर्व एकाच वेळीं असतील:- २४ ऐक्ष्वाकु, २७ पंचाल, २४ काशीचे राजे, २८ हैहय, ३२ कलिंग, २५ अश्मक, ३६ कुरु २८ मैथिल, २३ शूरसेन व २० बीतिहोत्र].
नन्द घराणें.
[एका शूद्रीपासून महानन्दीला महापद्म (नन्द) नांवाचा मुलगा होईल व तो सर्व क्षत्रियांचा नाश करील. तो ८८ वर्षें राज्य करील. त्याला आठ मुलगे होतील. त्यांपैकीं सुकल्प हा प्रथम होईल; आणि महापद्मानंतर १२ वर्षें ते सर्व राज्य करतील. कौटिल्य नांवाचा एक ब्राह्मण त्या सर्वांचा नाश करील; आणि शंभर वर्षपर्यंत त्यानें राज्याचा उपभोग घेतल्यानंतर तें राज्य मौर्यांच्याकडे जाईल.]
मौर्य घराणें.
[चंद्रगुप्ताला कौटिल्य राज्यावर बसवील. चंद्रगुप्त २४ वर्षें राज्य करील. बिंदुसार २५ वर्षे करील. अशोक ३६ वर्षें व त्याचा मुलगा कुनाल ८ वर्षें राज्य करील.]
| मत्स्यपुराण व वायुपुराण (जोन्स) | [बृहद्रथ चालू] | ||
| कुनालाचा पुत्र बंधुपालित | [८] | (त्यानंतर शुंगाच्याकडे राज्य जाईल.) वायुपुराण व ब्रह्मांडपुराण कुनालाचा पुत्र बंधुपालित |
[८] |
| । | । | ||
| दशोन त्याचा (?) नातू | [७] | इंद्रपालित | [१०] |
| । | । | ||
| दशनथ | [८] | देववर्मा | [७] |
| । | । | ||
| संप्रति | [९] | शतधनु | [८] |
| । | । | ||
| शालिशूक | [१३] | बृहद्रथ | [७] |
| । | (यानंतर शुंगाच्याकडे राज्य जाईल). | ||
| देवधर्मा | [७] | ||
| । | |||
| शतधन्वां | [८] | ||
| । | |||
| बृहद्रथ | [७०] | ||
शुंग घराणें.
[पुष्यमित्र सेनापति हा बृहद्रथाचा नाश करील व ३६ वर्षें राज्य करील.)
| (पुष्यमित्र) | [पुलिंदक चालू] | ||
| । | । | ||
| अग्निमित्र | [८] | घोष | [३] |
| । | । | ||
| वसुज्येष्ठ | [७] | वज्रमित्र | [९] |
| । | । | ||
| वसुमित्र | [१०] | भागवत | [३२] |
| । | । | ||
| अंध्रक | [२] | देवभूमि | [१०] |
| । | [यांच्यानंतर कण्वांच्याकडे राज्य जाईल). | ||
| पुलिंदक | [३] | ||
काण्वायन (शृंगभृत्य) घराणें.
[देवभूमि वाईट व अल्पवयी असल्यामुळें त्याचा प्रधान वसुदेव हा त्याला पदच्युत करून स्वतः राजा होईल.]
| तो [काण्वायन] | [९] | यांच्या नंतर आंध्रांच्याकडे राज्य जाईल. |
|
| । | [१४] | ||
| भूमिमित्र | |||
| । | |||
| नारायण | [१२] | ||
| । | |||
| सुशर्मा | [१०] | ||
आंध्र घराणें.
[शिशुक (सिंधुक) व त्याचे जातभाई हे सुशर्मा याचे नोकर असतील व ते काण्वायन व सुशर्मा यांच्यावर हल्ला करतील; आणि शुंगांच्या सत्तेचा नायनाट करून टाकतील.]
| सिमुक | [२३] | [आरिष्टकर्ण चालू] | |
| । | । | ||
| (सिमुकाचा धाकटा भाऊ) कृष्ण | [१०] | हाल | [५] |
| । | । | ||
| श्री शातकर्णि [मल्लक] | [१०] | मंतलक [पत्तलक] | [५] |
| । | । | ||
| पूर्णोत्संग | [१८] | पुरिकषेण [पुरींद्रसेन] | [२१] |
| । | । | ||
| स्कंधस्तम्भि | [१८] | सुंदर शातकर्णि | [१] |
| । | । | ||
| शातकर्णि | [५६] | चकोर शातकर्णि | [६ महिने] |
| । | । | ||
| लंबोदर | [१८] | शिवस्वाति | [२८] |
| । | । | ||
| आपीलक [दिविलब] | [१२] | राजा गौतमीपुत्र | [२१] |
| । | । | ||
| मेघस्वाति | [१८] | पुलोमा किंवा | [२८] |
| । | शातकर्णि | [२९] | |
| स्वाति | [१८] | । | |
| । | शिवश्री पुलोमा | [७] | |
| स्कंदस्वाति | [७] | । | |
| । | शिवस्कंध शातकर्णि | [३] | |
| मृगेंद्र स्वातिकर्ण | [३] | । | |
| । | यज्ञश्री शातकर्णिक | [२९] | |
| कुंतल स्वातिकर्ण | [८] | । | |
| । | विजय | [६] | |
| स्वातिवर्ण | [१] | । | |
| । | चंडश्री शातकर्णि | [१०] | |
| पुलोमावि [पदुमान्] | [३६] | । | |
| । | पुलोमावि | [७] | |
| आरिष्टकर्ण | [२५] | ||
निरनिराळीं स्थानिक घराणीं.
आंध्रांचें राज्य संपल्यानंतर त्यांच्या नोकरांचे वंशज राजे होतील. ७ आंध्र, १० आभीर, ७ गर्दभी [भिन्], १८ शक, ८ यवन, १४ तुषार, १३ गुरुंड व ११ मौन इतके राजे होतील. यांपैकीं श्रीपर्वतीय आंध्र घराणें ५२ वर्षें टिकेल. १० आभीर राजे ६७ वर्षें राज्य करतील; ७ गर्दभी राजे ७२ वर्षें राज्योपभोग घेतील; १८ शक राजे १८३ वर्षें राज्यसुख अनुभवतील; ८ यवन राजे ८७ वर्षें राज्यकारभार करतील; १४ तुषार राजे १०५(१००७) वर्षें राज्य चालवितील; १३ गुरुंड राजे (म्लेंच्छ जातीच्या हीन लोकांसह) १०४ १/२ वर्षें पृथ्वीचें राज्यशकट हांकतील व नंतर ११ मौन राजे १०३ वर्षें गादीवर राहतील. कालाच्या ओघानें ते नाहीसे झाल्यावर 'किलकिल' राजे होतील. त्यांच्यामागून बिंध्यशक्ति राज्य करील. किलकिल राजांनीं ९६ वर्षें राज्य केल्यानंतर पृथ्वी त्याच्या ताब्यांत जाईल.
विदिशा वगैरे घराणीं.
नागराज शेष याचा पराक्रमी मुलगा भोगी हा नागवंशामध्यें प्रसिद्ध होईल. नंतर जणूं काय चंद्रांशच असा सदाचंद्र, दुसरा नखवंत, नंतर धनधर्मा आणि पुढें बंगर हा चौथा याप्रमाणें राजे होतील. नंतर भूतिनंद हा वैदिश राज्यामध्यें राज्य करील.
शुंगांचा वंश संपला म्हणजे शिशुनंदि राज्य करील. त्याचा धाकटा भाऊ नंदियश याच्या वंशांत तीन राजे होतील. त्याच्या मुलीचा मुलगा शिशुक हा पुरिकेमध्यें राजा होईल.
विंध्यशक्तीचा शूर मुलगा प्रवीर हा कांचनका नगरीत ६० वर्षें राज्य करील; आणि उत्तम दानादिकांनीं युक्त असे वाजपेय यज्ञ करील. त्याचे चार मुलगे राजे होतील.
तिस-या शतकांतील राजघराणीं.
विंध्यक घराणें नाहींसें झाल्यावर तीन बाल्हिक राजे होतील. सुप्रतीक आणि नभीर हे पृथ्वीचा उपभोग ३० वर्षें घेतील. शक्यमान् हा महिषीचा राजा होता. पुष्यमित्र (?) आणि १३ पटुमित्र होतील. मेकलेमध्यें ७ राजे ७० वर्षें राज्य करतील. कोसलामध्यें फार शक्तिमान् व शहाणे असे मेघ नांवाचे ९ राजे होतील. नलाच्या वंशांतील सर्व शूर असे नैषध राजे हे मनूचा शेवट होई तोंपर्यंत राहतील.
मगध देशाचा जो शूर असा विश्वस्फाणि राजा होईल, तो सर्व राजांनां पदच्यत करून अन्यवर्णीयांनां राज्यपदावर बसवील. त्या जाती म्हणजे कैवर्त, पंचक, पुलिंद व ब्राह्मण ह्या होत. त्या सर्वांनां तो निरनिराळ्या देशांत राज्यावर बसवील. विश्वस्फाणि हा फार शक्तिमान् होईल. विश्वस्फाणि हा दिसण्यांत क्लीबासारखा आहे असें म्हणतात. तो क्षत्रिय वर्णाचा नाश करून दुसरी क्षत्रिय जात निर्माण करील. देव, पितर आणि ब्राह्मण यांनां संतुष्ट करुन तो गंगेच्या तीरीं जाईल, व आपलें शरीरोत्सर्जन करून इन्द्रलोकाप्रत गमन करील.
चौथ्या शतकाच्या आरंभीचीं समकालींन घराणीं.
नऊ नाग राजे हे चंपावती शहराचा उपभोग घेतील व सात नाग राजे हे सुंदर मथुरा शहराचा उपभोग घेतील. गुप्तवंशांत जन्मलेले राजे गंगा, प्रयाग, साकेत व मगध या प्रांतांचा उपभोग घेतील. मणिधान्यज राजे, नैषध, यदुक, शैशीत व कालतोयक या प्रांतांचा उपभोग घेतील. देवरक्षित हे कोशल, आंध्र पौण्ड्र , ताम्रलिप्त, किना-यावरील सर्व लोक आणि सुंदर चंपाशहर यांच्यावर राज्य करतील. कलिंग, महिष हे देश व महेंद्र पर्वतावरील रहिवासी यांचें संरक्षण गुह हा करील. स्त्रीराष्ट्र व भोक्ष्यक यांचा कनक हा उपभोग घेईल. सौराष्ट्र, आवन्त्य, आभीर, शूद्र, अर्बुद व मालव येथील राजे बहुतेक बहिष्कृत केलेले द्विज, किंवा शूद्रच असे होतील. शूद्र, बहिष्कृत द्विज वगैरे, आणि वैदिक-पवित्रताहीन म्लेच्छ असे लोक सिंधु नदीचा तट, चंद्रभागा, कौंती व काश्मीरप्रांत यांचा उपभोग घेतील. हे सर्व राजे एकाच काळीं असतील. व ते अनुदार, असत्यप्रिय व दुर्वर्तनी असे होतील.
